क्या आपने कभी सोचा है कि एक रात में आपकी तक़दीर बदल सकती है? शब-ए-क़द्र या लैलतुल क़द्र इस्लाम में सबसे महत्वपूर्ण और बरकत वाली रातों में से एक मानी जाती है। यह वह रात है जब अल्लाह की रहमत अपने चरम पर होती है और गुनाहों की माफी के दरवाजे खोल दिए जाते हैं।
इस आर्टिकल में, हम शब-ए-क़द्र क्या है? इसके महत्व, इसकी पहचान, इस रात में पढ़ी जाने वाली खास दुआओं और इससे मिलने वाली नेमतों के बारे में जानेंगे। आइए, जानते हैं कि शब-ए-क़द्र क्या है और इसका इस्लाम में क्या महत्व है। आइए, जानते हैं कि शब-ए-क़द्र क्यों इतनी खास है और इस रात में हमें क्या करना चाहिए।

लैलतुल-क़द्र क्या है?
लैलतुल क़द्र, जिसे शब-ए-क़द्र भी कहा जाता है, इस्लाम में सबसे मुकद्दस (पाक) रातों में से एक मानी जाती है। लैलतुल क़द्र की रात में ही क़ुरान शरीफ़ की पहली आयत जिब्रील अलैहिस्सलाम के द्वारा पैगंबर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर नाज़िल हुई थी।
शब-ए-क़द्र रमज़ान के आखिरी दस दिनों में किसी ताक़ रात में होती है, यानी 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं या 29वीं रात में होने की संभावना होती है। इस रात की फज़ीलत इतनी ज्यादा है कि सूरह अल-क़द्र में इसे हजार महीनों से बेहतर कहा गया है।
लोग शब ए क़द्र की रात को पाने के लिए एतिकाफ (मस्जिद में ठहरकर इबादत करना) करते हैं और रातभर क़ुरान की तिलावत, नफ्ल नमाज़, तस्बीह, और अल्लाह से गुनाहों की माफी मांगते हैं। चूंकि लैलतुल क़द्र की निश्चित तारीख़ नहीं बताई गई है, इसलिए मुसलमान आखिरी पांच ताक़ रातों में इबादत करते हैं, ताकि वे इस मुबारक रात की बरकतों को हासिल कर सकें।
इस रात को इबादत करने का सवाब हजार महीनों की इबादत से भी ज्यादा माना जाता है। इसलिए हर मुसलमान को चाहिए कि वह इस रात को खास दुआ, इबादत और तौबा में गुज़ारे, ताकि अल्लाह की रहमत और मग़फ़िरत हासिल कर सके।
लैलतुल कद्र 2025 कब है?
शब-ए-क़द्र की सही तारीख़ किसी को निश्चित रूप से नहीं पता, लेकिन यह रमज़ान के आखिरी दस दिनों की ताक़ रातों में से किसी एक पर आती है। 2025 में, यह 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं या 29वीं रात है।
No. Of Day | Day,s Of Ramadan |
---|---|
Day 1 | 21 |
Day 2 | 23 |
Day 3 | 25 |
Day 4 | 27 |
Day 5 | 29 |
लैलतुल क़द्र की रात में क्या करें?
लैलतुल क़द्र की रात में निम्नलिखित चीजें करें:
- क़ुरान शरीफ़ की तिलावत – इस रात में क़ुरान पढ़ना और समझना बहुत फज़ीलत रखता है।
- नफ्ल नमाज़ अदा करना – सालातुल तस्बीह, तहज्जुद की नमाज़ और दूसरी नफ्ल नमाज़ें पढ़नी चाहिए।
- तस्बीह और ज़िक्र करना – “सुभानअल्लाह”, “अल्हम्दुलिल्लाह”, “अल्लाहु अकबर” जैसी तस्बीहें पढ़ें।
- सदक़ा और खैरात देना – ज़रूरतमंदों की मदद करें, गरीबों को खाना खिलाएं और सदक़ा दें।
- दुआएं करना – अपने गुनाहों की माफ़ी और अल्लाह से रहमत और बरकत की दुआ करें।
- अस्तग़फ़ार पढ़ना – अपने गुनाहों के लिए तौबा करें।
- अपने और दूसरों के लिए दुआ करना – खुद के साथ-साथ अपने घरवालों, रिश्तेदारों और पूरी उम्मत के लिए दुआ करें।
लैलतुल क़द्र अल्लाह पाक की रहमत और मग़फिरत पाने का बेहतरीन मौका है, इसलिए इस रात को इबादत में गुजारना चाहिए।
लैलतुल-क़द्र की रात की फजीलत ?
लैलतुल-क़द्र की रात की अहमियत इस्लाम में बहुत ज़्यादा है, क्योंकि यह रात रहमत, बरकत और मग़फिरत (बख़्शिश) से भरी हुई है। इसकी खासियत को खुद क़ुरान शरीफ़ में सूरह अल-क़द्र में बयान किया गया है।
- क़ुरान शरीफ़ का नाज़िल होना
लैलतुल-क़द्र की सबसे बड़ी फज़ीलत यह है कि इसी रात क़ुरान शरीफ़ की पहली आयत नाज़िल हुई। यह वही रात है जब जिब्रील (अलैहिस्सलाम) ने पहली बार क़ुरान शरीफ़ की आयतें प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर लेकर आए।
- हज़ार महीनों से बेहतर रात
क़ुरान शरीफ़ में कहा गया है कि लैलतुल-क़द्र की इबादत हज़ार महीनों (83 साल) की इबादत से ज्यादा बेहतर है। इसका मतलब यह है कि जो इस रात इबादत, तौबा, और दुआ करता है, उसे 83 साल तक इबादत करने का सवाब मिलता है।
- अल्लाह की रहमत और मग़फिरत
यह रात गुनाहों की माफ़ी पाने का बेहतरीन मौका होती है। हदीस में आता है कि जो इंसान इस रात ईमान और यक़ीन के साथ इबादत करता है, उसके पिछले सभी गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं (बुखारी, मुस्लिम)।
- फरिश्तों का ज़मीन पर उतरना
इस रात अल्लाह के हुक्म से फरिश्ते ज़मीन पर उतरते हैं और रहमत, सलामती और बरकतों को फैलाते हैं (सूरह अल-क़द्र 97:4-5)।
लैलतुल कद्र की रात में कौन सी सूरह पढ़नी चाहिए?
लैलतुल क़द्र की रात में सूरह क़द्र की तिलावत करना बहुत फज़ीलत वाला अमल है। सूरह क़द्र खास तौर पर लैलतुल क़द्र की बरकतों और इसकी अहमियत को बयान करने के लिए नाज़िल हुई है।
सूरह अल-क़द्र (सूरह नंबर 97)
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
إِنَّا أَنْزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةِ الْقَدْرِ 1
وَمَا أَدْرَاكَ مَا لَيْلَةُ الْقَدْرِ 2
لَيْلَةُ الْقَدْرِ خَيْرٌ مِنْ أَلْفِ شَهْرٍ 3
تَنَزَّلُ الْمَلَائِكَةُ وَالرُّوحُ فِيهَا بِإِذْنِ رَبِّهِمْ مِنْ كُلِّ أَمْرٍ 4
سَلَامٌ هِيَ حَتَّىٰ مَطْلَعِ الْفَجْرِ 5
सूरह क़द्र का अनुवाद हिंदी में
1 हमने इसे (क़ुरआन को) लैलतुल क़द्र में नाज़िल किया।
2 और तुम्हें क्या मालूम कि लैलतुल क़द्र क्या है?
3 लैलतुल क़द्र हज़ार महीनों से बेहतर है।
4 इसमें फ़रिश्ते और जिब्रील (अलैहिस्सलाम) अपने रब के हुक्म से हर काम के लिए उतरते हैं।
5 यह रात सवेरा होने तक सलामती वाली होती है।
लैलतुल क़द्र की रात की पहचान क्या है ? | Sign Of Laylatul Qadr
हदीसों और इस्लामी तालीमात में लैलतुल-क़द्र की कुछ खास निशानियाँ बताई गई हैं, जिनसे इसे पहचाना जा सकता है। हालांकि, इस रात की सही तारीख़ का इल्म सिर्फ़ अल्लाह को है, लेकिन कुछ संकेत दिए गए हैं जो शब-ए-क़द्र की रात की पहचान करवाते हैं।
1. सूरज की रोशनी मद्धम होती है
सुबह जब सूरज निकलता है, तो उसकी रोशनी मुलायम और सफ़ेद होती है, उसमें तेज़ किरणें (rays) नहीं होतीं। यह सूरज देखने में चांद जैसा लगेगा और सीधे आंखों से देखा जा सकता है।
📜 हदीस:“लैलतुल-क़द्र की निशानी यह है कि उस दिन की सुबह सूरज बिना किरणों के निकलता है, जैसे वह एक तश्त (प्लेट) जैसा हो।”(सहीह मुस्लिम: 762)
2. मौसम सुहावना होता है
- न ज्यादा ठंड और न ज्यादा गर्मी होती है।
- यह रात सुकून भरी और दिल को राहत देने वाली होती है।
- कुछ रिवायतों में कहा गया है कि इस रात बारिश भी हो सकती है, क्योंकि बारिश रहमत की निशानी होती है।
📜 हदीस:“लैलतुल-क़द्र एक शांत और ठंडी रात होती है, न बहुत गर्म होती है और न बहुत ठंडी।”(मुसनद अहमद: 23333)
3. फरिश्तों का ज़मीन पर उतरना
इस रात फरिश्ते बड़ी तादाद में ज़मीन पर उतरते हैं और रहमत, बरकत और सलामती फैलाते हैं।
📖 क़ुरान (सूरह अल-क़द्र, 97:4-5)“इस रात फरिश्ते और रुह (जिब्रील) अल्लाह के हुक्म से उतरते हैं, और यह रात सुबह तक सलामती वाली होती है।”
4. सुकून और शांति का एहसास
- इस रात इंसान के दिल को सुकून महसूस होता है और वह इबादत में सुकून पाता है।
- इस रात जानवर भी खामोश रहते हैं, खासकर कुत्तों के भौंकने की आवाज़ नहीं आती।
- माहौल में एक अजीब सी रूहानियत और सुकून महसूस होता है।
📜 हदीस:“लैलतुल-क़द्र एक शांत और सुखद रात होती है, जिसमें कोई भीषण आवाज़ या हलचल नहीं होती।”(तफसीर इब्न कसीर)
शबे कद्र की दुआ हिंदी, अंग्रेजी, अरबी में
आइशा बिन्त अबू बक्र (रज़ि.) ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा, “अगर मुझे लैलतुल क़द्र की रात मिल जाए तो मैं अल्लाह पाक से क्या दुआ मांगूं?”
तो हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
अल्लाहुम्मा इंनका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफवा फ’अफु अन्नी

शबे कद्र की दुआ हिंदी में | Shabe Qadr ki dua Ki Dua In Hindi
अल्लाहुम्मा इंनका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफवा फ’अफु अन्नी
शबे कद्र की दुआ का अनुवाद हिंदी में | Shabe Qadar Ki Dua Ka Tarzuma
ए अल्लाह आप माफ करने वाला है आप माफ़ करना पसंद करते हैं बस आप मुझे माफ़ फरमा दे।
शबे कद्र की दुआ अंग्रेजी में | Laylatul Qadr Ki Dua In English
Allahumma Innaka Afuwwun Tuhibbul Afwa Fa’Afu Anni
शब-ए-क़द्र की रात में यह दुआ सबसे बेहतरीन दुआओं में से एक है। हमें इस रात में सच्चे दिल से अल्लाह से गुनाहों की माफी मांगनी चाहिए और अपने लिए, अपने घरवालों और पूरी उम्मत के लिए दुआ करनी चाहिए।
लैलतुल-क़द्र कब शुरु और ख़त्म होती है?
लैलतुल-क़द्र रमज़ान के आखिरी अशरे (आखिरी दस दिनों) में आने वाली ताक रातों में से एक होती है। यह रात 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं या 29वीं रात में से किसी एक रात को होती है।
लैलतुल-क़द्र मग़रिब की नमाज़ के बाद शुरू होती है और फज्र की नमाज़ तक रहती है।
चार लोगों की शबे कद्र में माफी नहीं होती
- शराब पीने वाला
- मां-बाप की नाफरमानी करने वाला
- रिश्तेदारों से लड़ने वाला
- कीना (नफ़रत) रखने वाला
शब-ए-कद्र और शब-ए-बारात में क्या अंतर है?
शब-ए-क़द्र और शब-ए-बारात दोनों ही इस्लाम में बेहद अहम और खास रातें हैं, लेकिन इनकी फज़ीलत और उद्देश्य अलग-अलग हैं।
शब-ए-क़द्र रमज़ान के आखिरी दस दिनों की ताक़ रातों (21, 23, 25, 27 या 29) में से एक होती है। इस रात की इबादत को हज़ार महीनों (83 साल) की इबादत से बेहतर कहा गया है, क्योंकि इसी रात क़ुरान शरीफ़ नाज़िल हुआ था। यह रात अल्लाह की रहमत, मग़फिरत (बख़्शिश) और बरकत पाने का बेहतरीन मौका होती है।
शब-ए-बारात, इस्लामी कैलेंडर के आठवें महीने शाबान की 15वीं रात को आती है। इसे रहमत और माफ़ी की रात माना जाता है, जब अल्लाह अपने बंदों की तक़दीर लिखते हैं और गुनाहों को माफ़ करने का मौका देते हैं। इस रात मुसलमान अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी और तक़दीर में बेहतरी की दुआ करते हैं।
एक मुसलमान के लिए यह जरूरी है कि वह इन दोनों रातों को बेहतर तरीके से इबादत में बिताए और अल्लाह की रहमत और माफी की दुआ करे।